कहानी

आदत से लाचार

तुगलकनगर में एक राजा राज करता था। उसके भवन के शयनकक्ष में एक खटमल रहता था. वह नियमित रुप से राजा का रक्तपान कर सुखपूर्वक जीवन- यापन करता था. एक दिन कहीं से एक मच्छर राजा के शयनकक्ष में आ गया. मच्छर को देखकर खटमल ने कहा – ‘‘मैं यहाँ कई बरसों से रह रहा हूँ. राजा के इस शयनकक्ष पर सिर्फ मेरा अधिकार है’’. मैं तुम्हें यहाँ रहने की अनुमति नहीं दे सकता. तुम तुरंत चले जाओ. मच्छर ने खटमल को समझाते हुए कहा - ‘‘घर आये अतिथि की इस प्रकार उपेक्षा नहीं करनी चाहिए. मेरा तो यहाँ आने का सिर्फ एक ही प्रयोजन है. वह प्रयोजन पूरा होते ही मैं यहाँ से चला जाऊँगा. बस मुझे दो- तीन दिन रहने की अनुमति दे दो.’’ खटमल ने उसके आने का प्रयोजन पूछा. मच्छर ने समझाते हुए कहा - ‘‘मैंने अनेक प्रकार के मनुष्यों का रक्त का पान किया है. सभी के रक्त कड़वे, खट्टे तथा कसैले थे. आज तक मैंने अच्छे खान-दान वाले राजा के रक्त का सेवन नहीं किया है. मेरी वर्षों से मनोकामना है कि मैं भी कभी इस अवसर का लाभ उठा पाऊँ. मुझे सिर्फ दो- तीन दिन यहाँ अपने साथ रहने की अनुमति दे दो.’’

इस प्रकार मच्छर ने खटमल को अपने विश्वास में ले लिया. खटमल ने शर्त रखी कि उसे राजा के निद्रामग्न होने तक धैर्य धारण करना होगा. मच्छर ने सहमति जताते हुए कहा - ‘‘जब तक तुम राजा का खून चूस न लोगे, तब तक मैं धैर्य धारण किए हुए तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगा.’’ रात में राजा अपने शयनकक्ष में आकर लेटा तो मच्छर अपने पर काबू नहीं रख पाया. उसका धैर्य खत्म होता गया. वह राजा के जागते में ही उसका रक्त चूसने लगा. शरीर में चुभन से बेचैन राजा चिल्लाकर उठ खड़ा हुआ. महाराज की आवाज को सुनकर बाहर खड़े सेवक शयनकक्ष में आ पहुँचे तथा बिस्तर की बारीकी से छान-बीन करने लगे. मच्छर तो बाहर उड़ गया लेकिन नौकरों की नज़र छिपकर बैठे खटमल पर पड़ गयी. उन्होंने खटमल को मार डाला.

कथा सार - किसी भी प्राणी का स्वभाव बदलना बहुत मुश्किल काम है. किसी को भी शरण देने के पहले अच्छी तरह सोच- विचार कर लेना चाहिए.

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