कहानी

राह का साथी

किसी नगर में एक लड़का रहता था. उसका नाम था ब्रह्मदत्त. एक बार उसे दूसरे गांव जाना था. वह चलने लगा तो उसकी मां ने कहा - बेटा अकेले न जाओ, किसी को साथ ले लो. लड़के ने कहा - इस रास्ते में कोई विघ्न-बाधा नहीं है. किसी को साथ लेने की क्या जरूरत है. मां ने उसे एक केकड़ा देकर कहा- अच्छा, कोई और साथी नहीं है तो तुम इस केकड़े को ही साथ ले लो. हो सकता है यही तुम्हारे किसी काम आ जाए.

मां का मन रखने के लिए लड़के ने उस केकड़े को पकड़कर कपूर की एक डिबिया में रख लिया और उसे एक झोले में डालकर चल पड़ा. कुछ दूर जाने के बाद वह एक पेड़ के नीचे आराम करने को रुका और वहीं सो गया. इसी बीच उस पेड़ के कोटर से एक सांप निकला और रेंगता हुआ लड़के के पास चला आया. सांपों को कपूर की गंध बहुत भाती है इसलिए वह पोटली फाड़कर उसमें रखी डिबिया को ही निगलने लगा. इसी बीच डिबिया खुल गई और डिबिया में रखे केकड़े ने निकलकर सांप का गला पकड़ लिया और उसकी जान ले ली.

लड़के की नींद खुली तो उसने देखा कि कपूर की डिबिया से सिर टिकाए सांप मरा पड़ा है. उसे समझते देर नहीं लगी कि यह डिबिया में रखे केकड़े का ही काम है. अब उसे अपनी मां की कही बात याद आई कि अकेले नहीं जाना चाहिए. रास्ते के लिए कोई न कोई साथी जरूर ढूंढ लेना चाहिए. उसने सोचा, मैंने अपनी मां की बात मान ली, सो ठीक ही किया.

सीख : जीवन में अकेले रहने से अच्छा एक साथी होना लाभदायी होता है.

मित्रता की पहचान

लेखि‍का - कु. शीला सारथी व कु. मनीषा महंत नवापारा कर्रा पाली कोरबा छत्तीसगढ़

दो दोस्त मनीष और शैलेष जंगल के रास्ते घर जा रहे थे. अचानक दूर से एक भालू आता दिखाई दिया. भालू को अपने पास आता देखकर दोनों डर गये. शैलेष जो पतला-दुबला था झट से पेड़ पर चढ़ गया. मनीष जो मोटा था वह जल्दी पेड़ पर चढ़ नहीं सकता था. वह तुरंत अपनी सांसों को रोककर जमीन पर लेट गया. कुछ देर बाद भालू वहां से गुजरा. भालू ने मनीष को सूंघा और वहां से चला गया. इस तरह दोनों की जान बच गई लेकिन इससे यह सीखने को मिला कि मित्रता की पहचान मुसीबत की घड़ी में होती है। सच्चा मित्र वही जो मुसीबत में काम आये।

Visitor No. : 6716424
Site Developed and Hosted by Alok Shukla