कहानी

मोर और कछुआ

संकलनकर्ता- डिगेश्वर कुमार पोर्ते, कक्षा सातवीं पूर्व माध्यमिक विद्यालय नवापारा

एक तालाब में कछुआ रहता था. उसी तालाब के किनारे पीपल के पेड़ पर एक मोर रहता था. वहां पर पीपल के अलावा इमली, बेर, आम आदि पेड़ थे. मोर आसपास के खेतों और बाड़ी से दाना चुगकर अपने पेड़ पर बैठ जाता था. जब काले काले बादल घुमड़ते थे, तब मोर अपने पंख फैलाकर सुंदर नृत्य करता था. मोर का नृत्य देखकर कछुआ पानी से बाहर निकल आता था. वह मोर का नृत्य देखकर बहुत खुश होता था. एक दिन उसने कहा कि वह मुझे भी नृत्य करना सिखा दो. मोर ने उसे नृत्य करना सिखाया. दोनों में मित्रता हो गई।

एक दिन मोर एक शिकारी के जाल में फंस गया. मोर ने कछुए से मदद की गुहार लगाई. चतुर कछुए ने शिकारी से कहा - मेरे मित्र मोर को छोड़ दो, इसके बदले मैं तुम्हें अनमोल मोती दूंगा. शिकारी मान गया. शिकारी मोती लेकर घर पहुंचा. शिकारी के दो बेटे थे. दोनों बेटों में मोती के बंटवारे को लेकर झगड़ा हो गया. शिकारी ने झगड़ा खत्म करने के लिए एक और मोती के लालच में तालाब के पास पुनः जाल फैलाया. मोर एक बार फिर फंस गया. लालची शिकारी फिर से मोर के बदले मोती मांगने लगा. शिकारी की बात सुनकर कछुए को एक युक्ति सूझी. उसने कहा पहले वाला मोती लाकर दिखाओ, मैं वैसा ही मोती दूंगा. शिकारी ने घर से मोती लाकर कछुए को दिया. कछुए ने कहा – तुम मोर को छोड़ दो, मैं मोती लाकर देता हूं. शिकारी ने मोर को छोड़ दिया. मोर उड़कर पेड़ पर बैठ गया. कछुआ मोती को तालाब में फेंक कर तेजी से तालाब में चला गया. शिकारी हाथ मलता रह गया. इसीलिए कहते हैं कि लालच बुरी बला है.

मातृभूमि से प्रेम

लेखिका - कु. संजना मण्डावी, कक्षा- आठवीं, शा.क.मा.शा.कोण्टा

एक वन में एक सुंदर झील थी. उसमें बहुत सी छोटी बड़ी मछलियां, मेढ़क, एक बूढ़ा कछुआ एवं अन्य जल के जीव सुखपूर्वक रहते थे. झील के किनारे छायादार पेड़ लगे थे. उन पेड़ो पर दूर-दूर से पक्षी आकर बसते थे, झील का पानी पीते थे तथा क्रीड़ा करते थे. लंबे समय से वर्षा न होने के कारण धीरे-धीरे झील का पानी कम हो गया. अब झील में पक्षियों के लिए नहाना और पानी पीना कठिन हो गया. झील के किनारे पेड़ो पर रहने वाले पक्षी उसे छोड़कर दूसरे स्थान पर चले गए. कुछ समय बाद मेढ़क और अन्य जीव भी झील छोड़कर जाने लगे, तो बूढ़े कछुए ने सभी से कहा - यह झील हम सभी की मातृभूमि है. इसमें हम सभी ने जन्म लिया, पले-बढ़े, खेले-कूदे और इसने ही हमें आश्रय भी दिया. आज झील में पानी कम होने के कारण इसका त्याग करना उचित नही है. आओ हम सब मिलकर प्रार्थना करें कि जल्दी से जल्दी वर्षा हो और झील भर जाए. उस बूढ़े कछुए की बात किसी ने नही सुनी और वे सभी झील छोड़कर चले गए. बूढ़ा कछुआ और मछलियां झील में ही रह गए. बूढ़े कछुए ने मछलियों के साथ प्रार्थना की जिसे ईश्वर ने सुन लिया। अगले दिन भारी वर्षा हुई और झील पानी से भर गई. झील को पानी से भरा हुआ देखकर वहां से गए हुए पक्षी, मेढ़क और अन्य जीव वापस आ गए. बूढे कछुए ने सबसे कहा कि हमें कष्ट होने पर भी अपनी मातृभूमि का त्याग नहीं करना चाहिए. बूढ़े कछुए की बात सुनकर सभी लज्जित हुए. उन्होने आगे से अपनी मातृभूमि न छोड़ने का संकल्प किया, और हंसी-खुशी सब मिलकर रहने लगे.

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